मित्रों, हमारे देश भारत में करीब 6.5 लाख मंदिर है| और हर मंदिर के साथ सनातनधर्मियों की आस्था और विश्वास जुड़े हुए है| लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी है, जिनका इतिहास, बनावट, महत्व और मान्यता हर साल लाखों श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनते है
आज हम इस लेख में भारत के प्रसिद्ध हिंदू देवी मंदिरों के बारे में जानेंगे। – भारत के 7 सुंदर और पवित्र देवी मंदिरों की एक ऐसी यात्रा पर, जो अगले कुछ मिनटों में आपके मन को प्रफुल्लित कर देगी|
आइए जानते हैं भारत के कुछ प्रमुख देवी मंदिरों के बारे में:
1. श्री माता वैष्णोदेवी धाम, जम्मू
कटरा से 12 किलोमीटर दूर त्रिकुट पहाड़ी पर स्थित “माँ वैष्णोदेवी” का पवित्र धाम समंदर की सतह से करीब 1.5 किलोमीटर की उंचाई पर है और मंदिर की मुख्य गुफा तक पहुंचकर माँ वैष्णोदेवी के दर्शन करने के लिए भक्तों को करीब 13 किलोमीटर की “पैदल यात्रा” करनी होती है|
कहा जाता है की महाभारत में “कुरुक्षेत्र युद्ध” से पहले “भगवान् श्रीकृष्ण” की सलाह मानकर “अर्जुन” माँ दुर्गा से आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तभी “माँ दुर्गा” अपने “वैष्णोदेवी” अवतार में प्रकट हुई थी
और अर्जुन ने एक श्लोक कहते हुए माँ की “पूजा अर्चना” की थी – जिसकी पहली लाइन थी – “जम्बूकाटक चित्तैषु नित्यं सन्निहितालये” – जिसका अर्थ ये है की आप जो हमेशा जम्मू पर्वत की ढलान पर बने मंदिर में रहती है| यानी महाभारत काल से पहले भी “त्रिकुट” पर्वत माता वैष्णोदेवी का धाम है, हालाकि यहाँ भव्य मंदिर का निर्माण आज से करीब 700 साल पहले “पंडित श्रीधर” ने करवाया था|
कहा जाता है की “माता वैष्णोदेवी” के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, और यहाँ हर साल करीब 1 करोड़ श्रद्धालु दर्शन करने आते है|
2. विंध्यवासनी विजयासन देवी मंदिर, सलकनपुर
मध्यप्रदेश में नर्मदापुरम से 35 किलोमीटर दूर विध्यांचल की हसीन वादियों में देवीधाम सलकनपुर स्थित है| जहाँ धरातल से करीब 3500 फीट दूर और 800 फीट की उंचाई पर “माँ विजयासन” का पवित्र सिद्धधाम है|
जहाँ पहुँचने के लिए भक्तों को 1065 सीढियां चढ़नी होती है, हालाकि अब मंदिर तक पहुँचने के लिए “रोप वे” भी बनाया गया है, साथ ही पहाड़ी काटकर एक सड़क भी बनाई गयी है, जहाँ से रोजाना 500 गाड़ियाँ मंदिर तक पहुँच सकती है|
श्रीमद् भागवत के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब सभी देवता देवी की शरण में पहुंचे| तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया, और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई|
मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ| मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया| कहा जाता है की ये मंदिर 6000 साल पुराना है और यहाँ भक्तों की मन्नत पूरी होती है|
जिसके लिए वो पंडित जी से एक पवित्र धागा लेकर “माँ” का आशीर्वाद लेते हुए अपनी कलाई पर बांधते है, और मनोकामना पूरी होने के बाद धागा वापस छोड़ जाते है|
3. नैना देवी मंदिर, नैनीताल
नैनीताल में मौजूद नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है| सभी जानते हैं कि जब मां सती भस्म हुई थी तो भगवान् शिव ने उनके मृत शरीर को लेकर तांडव किया था और उनके शरीर के अंग जहां-जहां गिरे वहां कालांतर में शक्तिपीठ बने, और “नैना देवी मंदिर” के स्थान पर ही “माँ सती” के नैन गिरे थे, इसलिए ये पवित्रस्थल 51 शक्तिपीठों में से एक है|
मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से आंखों से संबंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं, यहाँ माँ “नैना देवी” की मूर्ती दो आँखों के स्वरुप में विराजमान है और हर साल यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते है|
मंदिर के पीछे 167 गज चौड़ी और 93 फीट गहरी झील है, जबकि मंदिर द्वार की बाईं ओर एक विशाल पीपल का पेड़ है, और दाई तरफ भगवान हनुमान और भगवान गणेश की मूर्तियाँ हैं| मंदिर के अंदर 3 देवी देवता विराजमान हैं माता काली देवी, माँ नैना देवी और भगवान गणेश!
4. मनसा देवी मंदिर, पंचकुला, हरयाणा
हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों के अनुसार जिस जगह पर आज मां मनसा देवी का मंदिर है, यहां पर सती माता के मस्तक का आगे का हिस्सा गिरा था| मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था|
और इस शक्तिपीठ का निर्माण “राजा गोपाल सिंह” ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर सन 1815 में करवाया था| साथ ही उन्होंने मंदिर से अपने किल्ले तक एक गुफा बनवाई थी, जहाँ से रोजाना 3 किलोमीटर पैदल चलकर “राजा गोपालदास” “माँ मनसा देवी” के दर्शन करने आते थे और जब तक राजा दर्शन नहीं करते थे, तब तक मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते थे|
मनसा देवी के मुख्य मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है| मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है, ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी और सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं| यहाँ चैत्र और आश्विन महीने में मेला लगता है और हर साल लाखों श्रद्धालु “माँ मनसा देवी” के दर्शन करने आते है|
5. माँ शारदा भवानी मंदिर, मैहर –
मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर तहसील में त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर के रहस्य जानकर आप हैरान रहे जाएँगे| कहा जाता है की यहाँ “माँ सती का हार” गिरा था, उसी से इस मंदिर का नाम “मैहर” रखा गया और यहाँ “आदि शंकराचार्य” ने पहली बार पूजा की थी|
जिसके बाद ये मंदिर सदियों तक गायब हो गया था, लेकिन फिर “बुंदेलखंड” के “योद्धा आल्हा” ने यहाँ 12 वर्ष तक तपस्या की थी और इस मंदिर की खोज की थी| “महान योद्धा आल्हा” माँ को “माई” कहेकर पुकारते थे, इसलिए आज भी माता को “शारदा माई” कहेकर पुकारा जाता है|
इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य ये है की शाम की आरती के बाद जब पुजारी मंदिर के द्वार बंद कर लौट जाते हैं तो मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है, और जब “ब्रह्म मुहूर्त” में मंदिर के पट खोले जाते है, तो देवी की पहली पूजा की हुई मिलती है|
जिसे लेकर कहा जाता है की “आज भी माँ शारदा भवानी” की पहली पूजा आल्हा ही करते है|
6. जतमई माता मंदिर, रायपुर
छतीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 65 किलोमीटर दूर प्रकृति की खूबसूरती के बीचो बीच बना है जतमई माता का ये पवित्र मंदिर! जिसके पास से एक खुबसूरत झरना बहता है और चारों तरफ पेड़ पौधे है|
छतीसगढ़ के आदिवासी लोग “जतमई माता” को काफी पूजते है और आपको ये जानकर हैरानी होगी की इतना अद्भूत मंदिर परिसर सिर्फ भक्तों द्वारा दिए गए दान की राशि से ही बनाया गया है और इसमें सरकार की कोई मदद नहीं ली गयी|
मंदिर परिसर में जतमई माता मंदिर के अलावा काली माता, दुर्गा माता, नरसिंह देव और राधा कृष्ण मंदिर भी मौजूद है| वहीं यहाँ हनुमान जी की एक विशाल प्रतिमा है, जिसमें उन्होंने प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को अपने कन्धों उठाए रखा है| इसके अलावा, मंदिर परिसर में एक नाग गुफा भी है, जहाँ पहले नाग रहते थे, जो की इस पवित्र धाम की रक्षा करते थे|
7. हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन
2000 साल पुराना ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, क्योंकि यहाँ “माता सती” की कोहनी गिरी थी| शिप्रा नदी के पास मौजूद ये मंदिर सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि है, कहा जाता है की सम्राट विक्रमादित्य देवी को प्रसन्न करने के लिए हर 12 सालों में एक बार अपने मस्तक की बलि देते थे|
उन्होंने ऐसा 11 बार किया था, लेकिन हर बार उनका सिर वापस आ जाता था| मगर 12वी बार उनका सिर वापस नहीं आया, तो समझा गया की उनका शासन सम्पूर्ण हो गया, हालाकि उन्होंने उज्जैन में 135 सालों तक शासन किया था| हरसिद्धि माता मंदिर में श्रीसूक्त और वेद मंत्रों के साथ पूजा होती है|
मंदिर के प्रांगण में दो “दीप स्तंभ” मौजूद है, जो करीब 51 फीट ऊँचे है| दोनों दीप स्तंभों में मिलाकर लगभग 1 हजार 11 दीपक हैं| मान्यता है कि इन दीप स्तंभों की स्थापना उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने करवाई थी, विक्रमादित्य का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना है, इस दृष्टिकोण से ये दीप स्तंभ लगभग 2 हजार साल से अधिक पुराने हैं|
और यहाँ आज भी रोज शाम को दीपक जलाये जाते है| बताया जात अहि की दोनों दीप स्तंभों को एक बार जलाने में लगभग 4 किलो रूई की बाती व 60 लीटर तेल लगता है|