मित्रों, हमारे सनातन धर्म में “तीर्थयात्राओं” का काफी महत्त्व है| जिनमें सबसे लोकप्रिय है “चार धाम यात्रा…” जिसे लेकर कई पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है की जो व्यक्ति “चार धाम यात्रा” करते है| वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते है, उनके सभी पाप धुल जाते है, और वो “आध्यात्म की प्राप्ति” कर लेते है|

लेकिन हिंदू धर्म में इन “चारों धामों” का क्या महत्व है? इस यात्रा से हमें व्यक्तिगत तौर पर कौन कौनसे लाभ होते है? और क्यों जीवन में 1 बार चार धाम की यात्रा करना आवश्यक है? आज के इस लेख में हम इसी विषय पर बात करेंगे, तो ये लेख पूरा पढ़े|

सबसे पहले जानते है की भारत के चार धाम कौन कौन से है? तो ये पवित्र धाम देश की चारों दिशाओं में स्थित है, जैसे की उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिका! कहा जाता है की “भगवान् विष्णु” रामेश्वर में स्नान करते है, पूरी में भोजन करते है, बद्रीनाथ में ध्यान करते है और द्वारिका में विश्राम करते है|

इसलिए इन जगहों को “चार धाम” कहा जाता है| जिन्हें “आदि शंकराचार्यजी” ने आंठ्वी शताब्दी में बनाया था| चलिए अब एक एक करके इन धामों के धार्मिक महत्त्व को समझते है|

1. बद्रीनाथ धाम

यह धाम उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के किनारे बसा है| यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप में बद्रीनाथ को समर्पित है| बद्रीनाथ मंदिर को आदिकाल से स्थापित और सतयुग का पावन धाम माना जाता है| इस धाम की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी| भक्तों के अनुसार बद्रीनाथ दर्शन से पूर्व केदारनाथ धाम के दर्शन की काफी महत्वता है|

भगवान् विष्णु के बद्रीनाथ धाम के बारें में एक कहावत प्रचलित है – ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’| अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है| यानी की वो मनुष्य जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है|

आपको बता दें की दीपावली महापर्व के दूसरे यानी “पडवा के दिन” शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं, जो अगले 6 महीनों तक बंद रहते है, लेकिन मंदिर में “अखंड ज्योत” जलती रहती है|

6 महीने बाद “अप्रैल या मई” के महीने में बद्रीनाथ और केदारनाथ के कपाट खोले जाते है, जिसकी तिथि “नरेन्द्रनगर राजमहल से प्रति वर्ष वसंत पंचमी” के दिन की जाती है| और आश्चर्य की बात तो ये है की 6 महीने बाद कपाट खुलने पर मंदिर में वैसी ही साफ़ सफाई मिलती है, जैसी कपाट बंद होने से पहले छोड़ी गयी थी|

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जो तीर्थयात्री देश के चार कोनों में यात्रा करने में सक्षम नहीं होते, वो उत्तराखंड में “छोटे चार धाम” की यात्रा भी करते है| जिसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री जैसे पवित्र धाम शामिल है|

2. जगन्नाथ पूरी

भारत के ओडिशा राज्य में समुद्र के तट पर बसे चार धामों में से एक जगन्नाथपुरी की छटा अद्भुत है| इसे सात पवित्र पुरियों में भी शामिल किया गया है| ‘जगन्नाथ’ शब्द का अर्थ जगत का स्वामी होता है| ये मंदिर भगवान् विष्णु के अवतार श्री-कृष्ण को समर्पित है|

मंदिर के गर्भगृह में भगवान् जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्ती स्थापित है| जो शुद्ध नीम की लकड़ी से बनी हुई है, और जिस साल आषाढ के दो महीने आते है, तभी मंदिर में तीनों भगवानों की प्रतिमा बदल दी जाती है|

ऐसा 12, 14 या 19 सालों में एक बार होता है और इसे “नव-कलेवर” कहा जाता है| इस दौरान मंदिर में पुरी तरह से अँधेरा रहता है और पुजारी के आँखों पर भी एक पट्टी बांध दी जाती है| फिर पुजारी अपने दोनों हाथों में दस्ताने पहन कर पुरानी मूर्ति में से एक ब्रह्मा पदार्थ निकाल कर नई मूर्ति में स्थापित करता है| कहा जाता है की ये भगवान् श्रीकृष्ण का दिल है, जो आज भी “जगन्नाथ” की मूर्ती में धड़क रहा है|

कहा जाता है की मंदिर की लगभग 45वी मंजिल पर लगे झंडे को प्रतिदिन बदलना जरुरी है, और अगर ऐसा नहीं किया गया तो पुरे 18 सालों तक मंदिर बंद हो जाएगा|

इस मंदिर में रोजाना हजारों लाखो लोग प्रभु जगन्नाथ के दर्शन करने आते है, लेकिन दिलचस्प बात तो ये है की चाहे कितने भी श्रद्धालु आ जाए जगन्नाथ भगवान मंदिर में कभी प्रसाद घटा नहीं है| और जब मंदिर के कपाट बंद होते है तो प्रसाद भी अपने आप समाप्त हो जाता है|

यहाँ हर साल “भगवान् जगन्नाथ की रथयात्रा” का भी आयोजन किया जाता है| जिसमें जगन्नाथ टेंपल में मौजूद तीनों मूर्तियों को सालाना मंदिर से गुंडिचा टेंपल तक यात्रा करवाई जाती है| जिसके लिए तीन विशाल रथ तैयार किये जाते है और भगवान् जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष!

3. रामेश्वरम

ये धाम तमिलनाडु राज्य के रामनाथ जिल्ले में स्थित है| और ये मंदिर देशभर में मौजूद भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है| कहा जाता है की इस धाम की स्थापना “प्रभु श्रीराम” ने अपने वनवास के दौरान की थी, और “राम के इश्वर” से इस स्थल का नाम रामेश्वरम पड़ गया|

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मुख्य मंदिर में स्थापित शिवलिंग के अलावा रामेश्वरम की दूसरी खासियत है यहाँ के 22 कुंड! जो पवित्र जल से भरे हैं और मनुष्य यहां स्नान करके अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है|

4. द्वारका

जो गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित है| और द्वारिका को सात पवित्र पुरियों में से भी एक माना जाता है| द्वारका को भगवान् श्रीकृष्ण ने बसाया था और मथुरा से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था|

हालाकि असली द्वारका तो भगवान् श्रीकृष्ण के बाद समुद्र में समा गई थी लेकिन उसके अवशेष के रूप में आज बेट द्वारका और गोमती द्वारका नाम से दो स्थान हैं| द्वारका के दक्षिण में एक तालाब है, इसे गोमती तालाब कहते हैं| इसके नाम पर ही द्वारका को गोमती द्वारका कहते हैं|

इन चारों धाम की यात्रा एक क्रमबद्ध तरीके से की जाती है| जिसमें श्रद्धालु सबसे पहले बद्रीनाथ धाम जाते है, जहाँ वो भगवान् विष्णु का आशीर्वाद लेकर अपनी यात्रा का प्रारंभ करते है| साथ ही गंगोत्री से जल भरते है और आसपास के सभी तीर्थस्थलों के दर्शन करते है|

जिसके बाद वे जगन्नाथ पूरी पहुंचकर “भगवान् श्रीकृष्ण” के रूप “भगवान् जगन्नाथ” के दर्शन करते है, फिर रामेश्वरम जाकर “शिवलिंग” पर जल चढाते है और 22 कुंड में से नहाकर पाप मुक्ति करते है|

और आखिर में द्वारिका पहुंचकर भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन करते है| और अपनी इस पवित्र यात्रा को पूरा करते है|

चलिए अब जानते है की आखिर जीवन में एक बार चार धाम की यात्रा करना क्यों जरुरी है? और इसके कौन कौन से महत्त्व और लाभ है|

1. सबसे पहला महत्त्व है जन्म मरण के चक्र से मुक्ति – सनातन धर्म के कई पवित्र ग्रंथों में बताया गया है की चार धाम की यात्रा करने से इंसान जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है|

ख़ास तौर पर बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा ओ लेकर कहा जाता है की बन्द्रीनाथ में आने वाला व्यक्ति दोबारा गर्भ में नहीं आता, यानि उसे मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है| वहीं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद जो भक्त जल ग्रहण करता है वो पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है|

दूसरा महत्त्व है पाप मुक्ति – चारधाम की यात्रा करने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है| उसने जाने अनजाने में जो गलत कार्य किये होते हैं उनसे मुक्ति मिल जाती है|

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हालाकि सनातन धर्म में कहा गया है की पाप धोने का मतलब ये नहीं है की आप गलत काम करते रहो, बल्कि एक बार चारधाम की यात्रा करने के बाद हमें पुन्य-कर्म करने चाहिए और अपनी गलतियों को फिर से दोहराना नहीं चाहिए|

वहीं चार धाम की यात्रा से कई शारीरिक लाभ भी होते है – दरअसल, चारधाम की यात्रा अतिदुर्गम है लेकिन साथ ही यहां का वातावरण शुद्धता से भरा हुआ है, वातावरण की शुद्धता आपके तन और मन को भी शुद्ध करती है, जिससे आपका स्वास्थ्य बेहतर होता है और आपकी आयु में भी वृद्धि हो सकती है|

चौथा महत्त्व है धार्मिक संस्कृति के दर्शन – चारों धाम देश के चार कोनों में मौजूद है| जहाँ रहनेवाले लोगों की भाषा, पहनावा, धार्मिक परम्पराएं और आस्थाएं अलग अलग है, ऐसे में आप इस यात्रा में हिन्दू धर्म की अलग अलग धार्मिक संस्कृति के दर्शन कर सकते है| जो आपके व्यवहार में कई सकारात्मक बदलाव ला सकते है, जिससे जीवन में भी परिवर्तन आता है|

पांचवा लाभ है आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति – मित्रों, अध्यात्म का अर्थ है परमतत्व से आपका जुड़ाव, ये जुड़ाव तभी संभव है जब आपको सत्य का ज्ञान हो गया हो और चारधाम की यात्रा करने से आपको इसी ज्ञान की प्राप्ति होती है| आप जीवन के अर्थ को समझ पाते हैं और ईश्वर के प्रति जुड़ाव महसूस करते हैं|

इसके अलावा चार धाम की यात्रा आपके जीवन में अनेकों सुख लाती है| आपके तन एवं मन दोनों रूप से शांति प्रदान करती है| कहा जाता है कि इन स्‍थानों पर स्‍वयं ईश्‍वर वास करते हैं, अगर आप भी स्‍वयं ईश्‍वर की अनुभूति का अहसास करना चाहते हैं तो आपको चारधाम की यात्रा अवश्‍य करनी चाहिए| हालाकि अधिकांश लोग बुढ़ापे में तीर्थ यात्रा करते हैं, लेकिन जो लोग जवानी में ही इस तीर्थ यात्रा को पूरा कर लेते हैं, उन्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है|

तो दोस्तों, इन चार धामों में से आप कौनसे पवित्र स्थल की यात्रा कर चुके है? और आप अपनी अगली आध्यात्मिक यात्रा में कौनसे पवित्र धाम में दर्शन करने जानेवाले है? कमेंट्स में बताइये|  और सनातन धर्म से जुड़े ऐसे ही दिलचस्प वीडियोस के लिए “भारत स्पंदन” चैनल को सब्सक्राइब करके पास वाली घंटी जरुर बजा दीजिये, जय श्रीराम!